Wednesday, 13 March 2019

व्यक्ति में शहर होना


सच कहते हैं, शहर व्यक्तित्व का ही एक हिस्सा होता है

बाकी पसंदीदा या नापसंदीदा व्यक्तियों या फिर वस्तुओं की तरह, शहर भी पसंद या नापसंद होता है

पर कभी कभी शहर रूप, रंग और आकार बदलता है

वास्तविकता में हो न हो, व्यक्ति के मानस पटल पर या तो सिकुड़ता है या हर तरफ फैल जाता है

और वो शहर गर बंबई हो तो जाने अपना प्रभाव किस किस प्रकार छोड़ जाता है

 

मुझसे भी ऐसा ही कुछ रिश्ता इस सपनों की नगरी ने जोड़ा है

दस वर्षों से इसके दिल में अपना घर बनाकर रहते रहते अपने दिल में इसकी अनगिनत यादों को मैंने सँजोया है

लोकल ट्रेन के सफर से भयभीत मेरे मन ने

आज उसी ट्रेन के सफर के उन पलों को जीवन का अटूट हिस्सा बनते देखा है

 

बारिश की एक बूंद भी न भाती थी जिस दिल को

आज उसी बारिश के कुछ दिन न होने पर उसकी याद में व्याकुल होते उसको देखा है

ट्रेन के डिब्बों में मित्रों के असंख्य गुटों को देखा है

बातें करते, गाने गाते, हँसते-खेलते, तो कभी लड़ते-झगड़ते, घंटों का सफर पल भर में तय होते देखा है

 

समुद्र की विशाल अंत-हीनता को महसूस किया है

मनुष्य के निरंतर आगे बढ़ते रहने के जज़्बे को जीया है

ऊंची बहुमंज़िला इमारतों की चकाचौंध के नीचे

बस्तियों को जीवित होते और भरसक ज़िंदा रहते देखा है

 

हर प्रकार की कला का यहाँ सम्मान होते देखा है

हर त्योहार को लोगों के उत्साह से जीवित होते देखा है

बड़े से बड़े मॉल से लेकर छोटी से छोटी दुकानों को

निरंतर विकसित होते ही मैंने देखा है

 

ये सब देखते देखते, इन पलों को जीते जीते

इस शहर को अपने व्यक्तित्व का अंतरंग हिस्सा बनते देखा है

आज नहीं तो कल जाना तो होगा इस शहर से दूर

पर अपने अंदर इस शहर को समेटकर ही वो सफर तय हो पाएगा,

यह भी अभी से ही मैंने देखा है, यह भी अभी से ही मैंने देखा है

 

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